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हिन्दी दिवस को भारतीय भाषा दिवस के रूप में मनाने की जरूरत हैः डॉ. सदानन्द



लखनऊ। उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान में हिन्दी दिवस के अवसर पर वरिष्ठ कवि एवं पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी एवं सुप्रसिद्ध गीतकार गोपालदास नीरज की स्मृति काव्य गोष्ठी एवं व्याख्यान का आयोजन किया गया। 

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मुख्य अतिथि डॉ. कन्हैया सिंह ने कहा कि भारत के माथे पर हिन्दी बिन्दी के समान हो ऐसी मेरी अभिलाषा है। बोलियां मिलकर हिन्दी का निर्माण करती है। हिन्दी भाषा के विकास में बोलियों का महत्वपूर्ण योगदान है।

सम्पूर्ण भारत वर्ष हिन्दी को ही राष्ट्रभाषा मानता है ऐसी मेरी मान्यता है। हमारे देश की सांस्कृतिक एकता कभी खंडित नहीं हो सकती है। लिपियों के अन्तर को अलग करके देखा जाये तो देश की सभी भाषाओं को समझने में अधिक कठिनायी नहीं होगी। आज भाषायी एकता को सुदृढ़ बनाने की आवश्यकता है। 

उप्र हिन्दी संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष डॉ. सदानन्द प्रसाद गुप्त ने कहा कि सितम्बर माह में महान विभूतियों का अवतरण हुआ उनमें सर्वेश्वरदयाल सक्सेना, रामधारी सिंह दिनकर, भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का स्मरण करते हुए उनके साहित्यिक योगदान को रेखांकित किया। साथ ही रामचन्द्र शुक्ल, राहुल सांस्कृतायन की हिन्दी निष्ठा भी उल्लेख किया।

उन्होंने कहा कि रामकुमार वर्मा के भाषा व साहित्य के योगदान को सराहा जाना चाहिए। रामधारी सिंह दिनकर का साहित्य राष्ट्रीयता से ओत-प्रोत है। भारतेन्दु हरिश्चन्द्र जैसे युवा साहित्यकार इतने विपुल साहित्य का सृजन कर अमर हो गये। 

हिन्दी भाषा के विकास में भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने अथक प्रयास किया। उनके साहित्य में भारत की पूरी रूपरेखा परिलक्षित होती है। राहुल सांकृत्यायन ने हिन्दी की परिभाषिक शब्दावली पर जोर दिया। 

उन्होंने कहा कि आज हमारा दायित्व है कि हिन्दी दिवस को भारतीय भाषा दिवस के रूप में मनाने की आवश्यकता है। हमें अन्य भाषाओं को भी पढ़ने व सीखने के माध्यमों को खोजना चाहिए जिससे हिन्दी और मजबूत होगी। 

हिन्दी दिवस पर काव्य गोष्ठी में गोरखपुर के डॉ. अनन्त मिश्र ने कविता गौर से देखो हर चुपचाप जाते आदमी को, तुम्हें हमेशा एक रचना चलती नजर आयेगी।  फर्रुखाबाद के डॉ. शिवओम अम्बर ने अपनी कविता- मंगला गायत्रियों की साधना है, अक्षरों में सन्निहित शुभकामना है।

गोरखपुर के महेश अश्क ने- मथ के रख देती है, अंधेरे को एक कोशिश दिया जलाने की। कानुपर के ब्रजनाथ श्रीवास्तव ने- रजिया अब खड़ी हुई झील के किनारे, गुमसुम सी यादों में डूबती विचारें। 

वृन्दावन से अशोक अज्ञ ने- टेढ़ी ही टेढ़ी बहै यमुना, टेढेहि कूल कदम्ब की डारी। लखनऊ से देवकीनन्दन शान्त ने- कृपा करे वो शारदे, कण्ठ सुरीलो होय। डॉ. अशोक अज्ञानी ने-पूरे घर का भार उठाये खोपड़ी पर, जस ट्राली मा परी कमानी अम्मा है।

अंत में फर्रुखाबाद से उत्कर्ष अग्निहोत्री ने- रिश्तों में पड़ती नहीं, यूं ही व्यर्थ दरार, कुछ तुम जिम्मेदार हो, कुछ हम जिम्मेदार को पढ़ा।


समय : Saturday, 15 September 2018